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ग़ज़ल
तमाशा-गाह चारों सम्त से पुर-शोर है या'नी
कहीं जल्वत ज़ियादा है कहीं ख़ल्वत ज़ियादा है
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
मालूम है दुनिया को ये 'हसरत' की हक़ीक़त
ख़ल्वत में वो मय-ख़्वार है जल्वत में नमाज़ी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
एक वो हैं जिन्हें ख़ल्वत में भी लुत्फ़-ए-जल्वत
हाए वो शख़्स जो महफ़िल में भी तन्हा होगा
लैस क़ुरैशी
ग़ज़ल
नज़र हुस्न आश्ना ठहरी वो ख़ल्वत हो कि जल्वत हो
जब आँखें बंद कीं तस्वीर-ए-जानाँ देख लेते हैं
सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
वो ख़ल्वत हो कि जल्वत हो तजल्ली हो कि तारीकी
जहाँ तुम हो उसी को हम भरी महफ़िल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
ख़ल्वत में तेरी बार न जल्वत में मुझ को हाए
बातें जो दिल में भर रही हैं सो कहाँ कहूँ