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ग़ज़ल
'असद' जमइयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बे-ख़ुदी ख़ुश-तर
दो-आलम आगही सामान-ए-यक-ख़्वाब-ए-परेशाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मेरी जमईयत-ए-ख़ातिर को परेशाँ न करो
ज़ुल्फ़-ए-बरहम को हटाओ न अभी शाने से
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी
ग़ज़ल
हो परेशानी से जिस की मुझे सौ जमइय्यत
किस तरह जाऊँ मैं उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इस हवा-ए-दहर में जमईयत-ए-ख़ातिर कहाँ
दिल को जाने दो ये ज़ुल्फ़ें क्यूँ परेशाँ हो गईं
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
मिरे हिस्से में तो आई नहीं जमईयत-ए-ख़ातिर
तिरी ज़ुल्फ़ों की आख़िर क्यों परेशानी नहीं जाती
मोहम्मद मिर्ज़ा वासिफ़ रुदाैलवी
ग़ज़ल
मिरी जमईयत-ए-ख़ातिर का सामाँ हश्र क्या करता
क़यामत हो गई तरतीब-ए-अज्ज़ा-ए-परेशाँ में