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ग़ज़ल
मानता हूँ अब तुम में ताब-ए-ग़म नहीं है पर
जन्म-दिन पे 'यश्वर्धन' ख़ुद-कुशी नहीं अच्छी
यशवर्धन मिश्रा
ग़ज़ल
ढब देखे तो हम ने जाना दिल में धुन भी समाई है
'मीरा-जी' दाना तो नहीं है आशिक़ है सौदाई है
मीराजी
ग़ज़ल
जान-ओ-दिल सुनसान हैं उजड़े क़बीलों की तरह
ख़्वाहिशें ख़ामोश हैं बेबस फ़सीलों की तरह