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ग़ज़ल
ये भी कमाल ही तो है क़ाबिल-ए-दाद साहिबान
आज कलाम-ए-'जश्न' में कोई कमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बैठे बैठे आ गई नींद इसरार था ये किसी ख़्वाहिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
शाख़-ए-जज़्बात पे नग़्मात का मंज़र ख़ामोश
ग़म की आग़ोश में अरमाँ का कबूतर ख़ामोश