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ग़ज़ल
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
शिताब आ साक़िया गुल-रू कि तेरी यादगारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
अब नहीं ऐ यार जाैबन को तिरे बीम-ए-ज़वाल
ख़त्त-ए-मुश्कीं हुस्न की जागीर का परवाना है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बाँध गई है मुझ से ऐ दिल बंधन प्रीत की डोरी से
गाँव की वो नार जो अपने जौबन पर इतराती है
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
गले से आ के लिपट जा ख़ुदा को मान ओ बुत
है आज तुझ पे भी जौबन उरूज-ए-माह भी है