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ग़ज़ल
ऐ मुजाहिद जेहद-ए-रंग-ए-ख़ाकसारी है ज़रूर
तोड़ना लाज़िम है पहले इस बुत-ए-पिंदार को
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
यहाँ जादू-बयाँ कहते हैं अहल-ए-हर्फ़ को 'नासिर'
हुनर वाले हमेशा जेहद-ए-ला-हासिल में रहते हैं
नासिर मिस्बाही
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-जेहद-ओ-अमल से ज़िंदगी कोह-ए-गिराँ
बे-अमल हो ज़िंदगी तो रेत की दीवार है