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ग़ज़ल
ये दुनिया-भर के झगड़े घर के क़िस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
पुरानी काविशें दैर-ओ-हरम की मिटती जाती है
नई तहज़ीब के झगड़े हैं अब शैख़-ओ-बरहमन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
ख़ून ही की शिरकत वो न क्यूँ हो शिरकत चीज़ है झगड़े की
अपनों से वो देख रहा हूँ जो न करे बेगाना भी
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
हुदूद-ए-आलम-ए-तकवीं में सब मुमकिन ही मुमकिन है
तू ना-मुम्किन के झगड़े में न पड़ा इम्कान पैदा कर
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
कौन कह सकता है ये अहल-ए-तरीक़त के सिवा
सारे झगड़े हैं जहाँ में तिरी निस्बत के सिवा
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
वो बहुत सफ़्फ़ाक सी धूमें मचा कर चल दिया
और अब झगड़े यहाँ उस शख़्स-ए-तूफ़ानी के हैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
झगड़ा ही तुम चुका दो जब तेग़ खींच ली है
आफ़त में फिर न मुझ को जान-ए-मलूल डाले