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ग़ज़ल
ये दिल वो शीशा है झमके है वो परी जिस में
भरा है मू-ए-ब-मू सेहर-ए-सामरी जिस में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अक्स वो है कि जो महताब के रुख़ में झमके
उस का क्या होवे कवाकिब की जो झिलमिल में पड़ा
अज़ीज़ अख़्तर
ग़ज़ल
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे