आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "jhang"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "jhang"
ग़ज़ल
मैं आँधियों में हाथ भी पकड़ूँ तिरा तो क्या
इक शाख़-ए-बे-सिपर हूँ हवाओं की जंग में
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
हाँ वही झंग जहाँ वंग के चर्चे हैं बहुत
पर मेरे दिल में निहाँ रहता है इक हीर का दुख
ज़र्रीं मुनव्वर
ग़ज़ल
तिरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है
न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना