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ग़ज़ल
याँ वो आतिश-ए-नफ़साँ हैं कि भरें आह तो झट
आग दामान-ए-शफ़क़ को भी लगा सकते हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हासिद तो है क्या चीज़ करे क़स्द जो 'इंशा'
तू तोड़ दे झट बल्ग़म-ए-बाऊर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जों गली में मुझे आते हुए देखा तो वो शोख़
अपनी चौखट से उचक झट से गया पट से लिपट
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
कर दिया मुज्तहिद-ए-वक़्त को क़ातिल झट-पट
हम ने मस्जिद में कल ऐसे ही क़यामत की बहस
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले
तो उस के साया से झट बन के इक परी निकले
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
क़हर किया ये तुम ने साहब आँख लड़ाना आफ़त था
झट-पट दिल को फूँक दिया और आग लगाई सीने में
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मलंग आपस में कहते थे कि ज़ाहिद कुछ जो बोले तो
इशारा उस को झट सू-ए-नर-अंगुश्त-ए-शिकम कीजे