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ग़ज़ल
दिलों पर सैकड़ों सिक्के तिरे जोबन के बैठे हैं
कलेजों पर हज़ारों तीर इस चितवन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
तुर्फ़ा निकाला आप ने जोबन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मुलाइम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़ की सूरत
उठा सीना सफ़ा पेड़ू अजब जोबन की नारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सियह पोशाक दोश-ए-नाज़ पर बिखरी हुई ज़ुल्फ़ें
मिरे मातम की शिरकत को बड़े जोबन से निकलेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ऐ मुझ पर हँसने और किसी को देखने वाले ये तो कहो
यूँ कब तक जान पे बनती है यूँ कब तक जोबन रहता है