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ग़ज़ल
वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं
ख़ुद-ब-ख़ुद फ़ासले मिट जाएँ ज़रूरी तो नहीं
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है
ये ज़मीं रक़्स में है सारा जहाँ रक़्स में है
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
जो तिरी नज़र में पिन्हाँ न ये ए'तिबार होता
मिरी जाँ ग़ुबार होती मिरा दिल मज़ार होता
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
हम ने इक उम्र में क्या क्या न जहाँ देखे हैं
आसमाँ देखे हैं और क़ा'र-ए-निहाँ देखे हैं
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
ऐसी तन्हाई है अपने से भी घबराता हूँ मैं
जल रही हैं याद की शमएँ बुझा जाता हूँ मैं
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
क्या बतलाएँ याद नहीं कब इश्क़ के हम बीमार हुए
ऐसा लगे है अर्सा गुज़रा हम को ये आज़ार हुए