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ग़ज़ल
ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
जितने दुख थे जितनी उमीदें सब से बराबर काम लिया
मैं ने अपने आइंदा की इक तस्वीर बनाने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
मैं ने अब तक जितने भी लोगों में ख़ूद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
बर्क़ किया है अक्स-ए-बदन ने तेरे हमें इक तंग क़बा
तेरे बदन पर जितने तिल हैं सारे हम को याद हुए