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ग़ज़ल
सताती हैं रुलाती हैं मुझे यादें दिसम्बर की
जगाती हैं जलाती हैं मुझे रातें दिसम्बर की
मुनज़्ज़ह नूर
ग़ज़ल
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
नर्गिस ओ गुल की खिली जाती हैं कलियाँ देखो सब
फिर भी उन ख़्वाबीदा फ़ित्नों को जगाती है बहार