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ग़ज़ल
जीवन नय्या जूझ रही है ज़ुल्म के बहते धारों से
हम ने क्या क्या दर्द समेटे रोज़ाना अख़बारों से
अरमान अकबराबादी
ग़ज़ल
'माजिद' हम ने इस जुग से बस दो ही चीज़ें माँगी हैं
ऊषा सा इक सुंदर चेहरा दो नैनाँ शरमाए