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ग़ज़ल
वो जो छुप जाते थे काबों में सनम-ख़ानों में
उन को ला ला के बिठाया गया दीवानों में
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
थोड़ा सा भी जिन लोगों को इरफ़ान-ए-मज़ाहिब था वो बच कर
का'बों से शिवालों से कलीसाओं से आगे निकल आए
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
थोड़ा सा भी जिन लोगों को इरफ़ान-ए-मज़ाहिब था वो बच कर
का'बों से शिवालों से कलीसाओं से आगे निकल आए
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
तरद्दुद में हैं सब का'बों का बुतख़ानों का क्या होगा
मुझे ये फ़िक्र है गुमराह इंसानों का क्या होगा
अशरफ़ रफ़ी
ग़ज़ल
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
ज़िंदगानी का मज़ा मिलता था जिन की बज़्म में
उन की क़ब्रों का भी अब मुझ को पता मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
कशिश से कब है ख़ाली तिश्ना-कामी तिश्ना-कामों की
कि बढ़ कर मौजा-ए-दरिया लब-ए-साहिल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना