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ग़ज़ल
आँखें बुझा के ख़ुद को भुला के आज 'शनास' मैं आया हूँ
तल्ख़ थीं लहजों की बरसातें रंग भी कड़वे-कसीले थे
फ़हीम शनास काज़मी
ग़ज़ल
वो शीरीं-लब की कड़वे बोल अमृत हैं मिरे हक़ में
तुझे मालूम क्या है लज़्ज़त-ए-दुश्नाम ऐ वाइ'ज़