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ग़ज़ल
जिस चीज़ से तुझ को निस्बत है जिस चीज़ की तुझ को चाहत है
वो सोना है वो हीरा है वो माटी हो या कंकर हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे
घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
बर्फ़ीली रुत की तेज़ हवा क्यूँ झील में कंकर फेंक गई
इक आँख की नींद हराम हुई इक चाँद का अक्स ख़राब हुआ