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ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
हूँ जाँ-ब-लब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं 'मोमिन' इसी तरह
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अल्लाह री गुमरही बुत ओ बुत-ख़ाना छोड़ कर
'मोमिन' चला है का'बा को इक पारसा के साथ
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
'मोमिन' ये लाफ़-ए-उल्फ़त-ए-तक़्वा है क्यूँ मगर
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
'मोमिन' को तो न लाए कहीं दाम में वो बुत
ढूँडे है तार-ए-सुब्हा के ज़ुन्नार के लिए
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ज़िक्र-ए-शराब-ओ-हूर कलाम-ए-ख़ुदा में देख
'मोमिन' मैं क्या कहूँ मुझे क्या याद आ गया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़