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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुदा-ओ-अहरमन बदले वो ईमान-ए-दुई बदला
हदूद-ए-ख़ैर-ओ-शर बदले मज़ाक़-ए-काफ़िरी बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इस को जन्नत में क़दम रखने पे है पाबंदियाँ
जिस किसी बद-ज़ेहन की भी काफ़िरी पोशाक है
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न करम न कोई इ'ताब है कोई इस अदा का जवाब है
कभी दोस्ती को तरस गए कभी दुश्मनी को तरस गए
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
ऐ हसीं लड़की तुम्हारे हुस्न के लज़्ज़त परस्त
काफ़िरी से सर बचा कर शाइ'री तक आ गए
इफ़्तिख़ार फलक काज़मी
ग़ज़ल
काफ़िरी सेहर न थी 'इश्क़-ए-बुताँ खेल न था
ब-ख़ुदा मैं तो इसी से उसे मुश्किल समझा