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ग़ज़ल
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये कार-गाह-ए-ख़ैर भी है बज़्म-ए-शर भी है
दुनिया क़याम-गाह भी है रहगुज़र भी है
निहाल रिज़वी लखनऊवी
ग़ज़ल
पर्दा-ए-चश्म पे रक़्साँ है तिरा अक्स हुनूज़
सो बस इक वहम है ये कार-गह-ए-साअत-ए-हिज्र
अंजुम उसमान
ग़ज़ल
वली काकोरवी
ग़ज़ल
फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारा कब हासिल हुई 'फ़रहत' मुझे
हूँ असीर-ए-कार-गाह-ए-हुस्न-ए-जानाना अभी
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
सूफ़ी ये सहव महव हुए सद्द-ए-बाब-ए-उंस
क्या इम्बिसात कार-गह-ए-हसत-ओ-बूद में