आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "kaasa-e-khairaat"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "kaasa-e-khairaat"
ग़ज़ल
जिस्म की क़ैद में हूँ कश्मकश-ए-ज़ात में हूँ
एक सिक्के की तरह कासा-ए-ख़ैरात में हूँ
सना गोरखपुरी
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मज्लिस-ए-हुस्न में पहुँचे जो कोई तो देखे
कासा-ए-बादा-ए-गुल-रंग धरा होता है