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ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ऐसी बस्ती में मियाँ अम्न-ओ-अमाँ का क्या सवाल
सुल्ह-जू कम हों जहाँ पर और बलवाई बहुत
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
क़ाबिल-ए-तारीफ़ है तेरे फ़िदाई का इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मज्लिस-ए-हुस्न में पहुँचे जो कोई तो देखे
कासा-ए-बादा-ए-गुल-रंग धरा होता है