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ग़ज़ल
लहलहाते हुए ख़्वाबों से मिरी आँखों तक
रतजगे काश्त न कर ले तो वो कब सोता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
हुस्न की जितनी ज़मीं होती है ना-क़ाबिल-ए-काश्त
इश्क़ पैदा किया करता है सदा सब में अनाज
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
देख ले कितने कष्ट उठा कर तेरे दर तक पहुँचा हूँ
देख ले पपड़ी होंटों की और देख ले छाले पाँव के
इफ़्तिख़ार हैदर
ग़ज़ल
हिज्र के हाथों दिल की ज़मीं पर नाग-फनी जब काश्त हुए
हम ने याद की कलियाँ सूंघीं और महकाई इश्क़ की आग