aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kahaar"
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ मेंपलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के
ये बस्ती है मुसलमानों की बस्तीयहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैंअब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
जब्बार भी रहीम भी क़हहार भी वहीसारे उसी के नाम हैं अल्लाह इश्क़ है
ज़ुल्म करते हुए वो शख़्स लरज़ता ही नहींजैसे क़हहार के मअ'नी वो समझता ही नहीं
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मैं रोक पाऊँगा आँसू न रुख़्सती पे मगरकहार डोली जो ले आए हैं चले जाओ
कोई परी हो अगर हम-कनार होली मेंतो अब की साल हो दूनी बहार होली में
रास्ता पुर-ख़ार दिल्ली दूर हैसच कहा है यार दिल्ली दूर है
ज़बान पर सभी की बात है फ़क़त सवार कीकभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की
इक ख़ुदाई कहा करे क़हहारहम तो उस को ग़फ़ूर कहते हैं
निकल के नरग़ा-ए-क़हर-ओ-अज़ाब से 'राहत'सब अपने वास्ते जा-ए-पनाह देखते हैं
उठाए इश्क़ का काँधे पे बार आए तोक़ुली बने कि बने हैं कहार आए तो
जोबन ढले ज़ईफ़ हुई अब कहाँ वो हुस्नआई ख़िज़ाँ गया वो ज़माना बहार का
इस के सिवा किसी से मुझे क्या ही चाहिएहसरत की पालकी का कोई दिल कहार हो
डोली अरमाँ कहार है शादीचार दिन की बहार है शादी
वो क़हहार भी है लेकिनबंदा रो भी सकता है
बे-सुलूकी ने बुराई में भी जड़ पकड़ी हैक्यों रिया-कार रिया-कार से बच बच के चला
दया जवाब न कुछ मुस्कुरा के रह गए फूलज़बान-ए-ख़ार ने कीं बद-ज़बानियाँ क्या क्या
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