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ग़ज़ल
कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए
न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम
ख़ुद को समझने आए हैं रूह-ए-मजाज़ ले के हम
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
लहज़ा-ब-लहज़ा जल गई दर्द-ए-बहार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
वक़्फ़ कर दी ज़िंदगी सब ने ज़माने के लिए
अब किसे फ़ुर्सत किसी से दिल लगाने के लिए
अरमान ख़ान अरमान
ग़ज़ल
मिट गया सब जो लिखा था मुंतशिर औराक़ पर
ख़्वाहिशें हसरत बनीं तो रख दिया इक ताक़ पर