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ग़ज़ल
राह-ए-हक़ में जो हर इक चीज़ लुटाता है 'कशिश'
उस की झोली को ख़ुदा ग़ैब से भर देता है
कशिश संदेलवी
ग़ज़ल
चाहतों की आस में ढूँढा ज़माना ऐ 'कशिश'
तेरी ख़ातिर दूसरे लोगों को ठुकराना पड़ा
निधि गुप्ता कशिश
ग़ज़ल
निधि गुप्ता कशिश
ग़ज़ल
कम हुई क्या फ़सुर्दगी 'कैफ़'-ए-अलम-नसीब की
आप ने देख तो लिया बारहा मुस्कुरा के भी
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
कुछ रोज़ से वो 'कैफ़' जो इक गोशा-नशीं था
रुस्वा सर-ए-बाज़ार है मा'लूम नहीं क्यों
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
'कैफ़' इक ख़्वाब-ए-परेशाँ है किसी महबूब का
लेकिन ऐसा जिस को वो ख़ुद भी भुला सकता नहीं
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
हर इक को 'कैफ़' तुम क्यों अपना अफ़्साना सुनाते हो
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-जम्हूर हो जाए तो क्या होगा
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
ज़िंदा दरगोर हूँ मैं कसरत-ए-आलाम से 'कैफ़'
लोग फिर भी मिरे जीने की दु'आ करते हैं