आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "kamaal-e-be-kalii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "kamaal-e-be-kalii"
ग़ज़ल
ये मेराज-ए-कमाल-ए-बे-ख़ुदी-ए-शौक़ ही कहिए
जिधर सज्दा किया मैं नै उधर ही आस्ताँ बदला
रज़ी बदायुनी
ग़ज़ल
है 'कमाल' बादा-कशी का ये कि ख़याल-ए-चश्म जो आ गया
हुए ऐसे बे-ख़ुद-ओ-मस्त हम न इधर गए न उधर गए
कमाल हैदराबादी
ग़ज़ल
मुझे अपने आप पे मान था कि न जब तलक तिरा ध्यान था
तू मिसाल थी मिरी आगही तू कमाल-ए-बे-ख़बरी रही
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ये कमाल-ए-बे-ख़ुदी है कि नतीजा-ए-ख़ुदी है
तुझे ढूँडते रहे यूँ कि मक़ाम तक न पहुँचे
नवाब सय्यद हकीम अहमद नक़्बी बदायूनी
ग़ज़ल
कमाल-ए-बे-ख़ुदी मंज़िल-ब-मंज़िल काम करता है
जुनून-ए-जुस्तुजू सर-दर-गरेबाँ है जहाँ मैं हूँ