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ग़ज़ल
कमाल-ए-ज़ब्त की होगी बयाँ तफ़्सीर काग़ज़ पर
रक़म कर दूँगा ऐसी दिल-नशीं तहरीर काग़ज़ पर
अय्यूब ख़ान बिस्मिल
ग़ज़ल
ख़ुद क़ल्ब मिरा जल्वा-गह-ए-हुस्न-ए-अज़ल है
ऐ 'ज़ब्त' मैं जोया-ए-सनम-ख़ाना नहीं हूँ
ज़ब्त सीतापुरी
ग़ज़ल
कमाल-ए-शौक़ में मंज़िल से क़ुर्ब हो तो गया
मज़ा तो जब है कि रफ़्तार तेज़-तर हो जाए
ज़ब्त सीतापुरी
ग़ज़ल
नहीं जो ज़ब्त की तौफ़ीक़ दे ख़ुदा के सिवा
कि लाख ग़म भी हैं उम्र-ए-गुरेज़-पा के सिवा
ज़ब्त अंसारी
ग़ज़ल
वो दोस्तों के अज़ाएम से 'ज़ब्त' क्या बचता
जो दुश्मनों की तरफ़ से भी हुस्न-ए-ज़न में रहा
ज़ब्त अंसारी
ग़ज़ल
तलाश-ए-यार और इस बे-ख़ुदी में 'ज़ब्त' कब मुमकिन
वो आलम है बता सकते नहीं ख़ुद ही निशाँ अपना