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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
इश्क़ से कैसे बाज़ आएँ हम इश्क़ तो अपना धर्म हुआ
जिस दिन इश्क़ से नाता टूटा समझो क्रिया-कर्म हुआ
ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गागर के सागर में अक्सर डूबा है ग़ुरूर पहाड़ों का
तुम अपने दिल पर रहम करो पनघट पे अकेले जाओ नहीं
अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
यहाँ क्यों लोग इस सच्चाई से अंजान होते हैं
कि अच्छे कर्म ही इंसान की पहचान होते हैं