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ग़ज़ल
मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने
तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
हाथ में सोने का कासा ले के आए हैं फ़क़ीर
इस नुमाइश में तिरा दस्त-ए-तलब देखेगा कौन
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
वहाँ कितनों को तख़्त ओ ताज का अरमाँ है क्या कहिए
जहाँ साइल को अक्सर कासा-ए-साइल नहीं मिलता