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ग़ज़ल
राह-ए-हक़ में जो हर इक चीज़ लुटाता है 'कशिश'
उस की झोली को ख़ुदा ग़ैब से भर देता है
कशिश संदेलवी
ग़ज़ल
निधि गुप्ता कशिश
ग़ज़ल
चाहतों की आस में ढूँढा ज़माना ऐ 'कशिश'
तेरी ख़ातिर दूसरे लोगों को ठुकराना पड़ा