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ग़ज़ल
'सब्र' हंगाम-ए-तलब शर्त है निय्यत में ख़ुलूस
जाएगी बाब-ए-इजाबत पे दुआ तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
महफ़िल-ए-साज़-ओ-तरब मतला-ए-वीराँ क्यूँ है
शेवा-ए-सब्र-ओ-सुकूँ दिल से गुरेज़ाँ क्यूँ है
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते
मोहब्बत करने वाले दिल परेशानी में आ जाते
अज़्म शाकरी
ग़ज़ल
मिलती है नज़र उन से तो खो जाते हैं हम और
मंज़िल के क़रीब आ के बहकते हैं क़दम और
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
ऐ ख़ुदा कश्मकश-ए-यास-ओ-तमन्ना कब तलक
उन के रहने के लिए दिल में हो हर ख़ाना जुदा