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ग़ज़ल
क्या वस्ल की शब काटी है फ़िक़रे ही बता कर
सच है कि तुम्हें बात कतरना नहीं आता
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना