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ग़ज़ल
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म ये है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़्साने का
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
थका देती हैं जब कौनैन की पहनाईयाँ मुझ को
तिरे दर पर पहुँच कर ताज़गी महसूस करता हूँ
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
सब दौलत-ए-कौनैन जो दी इश्क़ के बदले
इस भाव ये सौदा मुझे सस्ता नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
तसद्दुक़ इस्मत-ए-कौनैन उस मज्ज़ूब-ए-उल्फ़त पर
जो उन का ग़म छुपाए और ख़ुद बद-नाम हो जाए
शेरी भोपाली
ग़ज़ल
बज़्म-ए-कौनैन मुरत्तब हुई तेरी ख़ातिर
वक़्त है तेरे लिए इस में जो माल अच्छा है