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ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उस सितम-केश के चकमों में न आना 'बेख़ुद'
हाल-ए-दिल किस को सुनाते हो ये क्या करते हो
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
तू मिरे हाल से ग़ाफ़िल है पर ऐ ग़फ़लत-केश
तेरे अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल नहीं ग़फ़लत वाले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
मैं वफ़ा-केश 'आरज़ू' और वो वफ़ा-ना-आश्ना
पड़ गया मुश्किल में पा कर अपनी मुश्किल का पता
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
पहुँच पाएँ न क्यूँ नज़रें कहीं मायूस चेहरों तक
'कुँवर' राहों में उन की केश घुँघराले पड़े होंगे
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
ख़ुदा करे कहे तुझ से ये कुछ ख़ुदा-लगती
कि ज़ुल्फ़ ऐ बुत-ए-बद-केश तेरे कान लगी
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
'सहबा' कौन शिकारी थे तुम वहशत-केश ग़ज़ालों के
मतवाली आँखों को तुम ने आख़िर कैसा राम किया
सहबा अख़्तर
ग़ज़ल
ऐ तग़ाफ़ुल-केश जल्दी आ कि तू वाक़िफ़ नहीं
इस दिल-ए-बेताब ओ जान-ए-मुज़्तरिब के ढंग से