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ग़ज़ल
हम वफ़ा-केशों का ईमाँ भी है परवाना-सिफ़त
शम-ए-महफ़िल जो वो काफ़िर न रहा और सही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
हम वफ़ा-केशों के दम से है ये सतवत ये उरूज
आप के हम हैं तो ये जाह-ओ-हशम आप के हैं
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
ग़म-ए-फ़िराक़ के कुश्तों का हश्र क्या होगा
ये शाम-ए-हिज्र तो हो जाएगी सहर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
दिल्ली कहाँ गईं तिरे कूचों की रौनक़ें
गलियों से सर झुका के गुज़रने लगा हूँ मैं
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
किस किस को तुम भूल गए हो ग़ौर से देखो बादा-कशो
शीश-महल के रहने वाले पत्थर ढोने वाले हैं