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ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में हम ने यारो सारी उम्र गुज़ारी है
चलते चलते ठोकर खाएँ ऐसी कोई बात नहीं
सय्यद आरिफ़ अली
ग़ज़ल
वादों के जंगल में 'आज़र' हम तो बरसों भटके हैं
आप करें क्यूँ दिल पे भरोसा आप ये धोका खाएँ क्यूँ
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
आँखें जो कुछ देख रही हैं उस से धोका खाएँ क्या
दिल तो 'आजिज़' देख रहा है हद्द-ए-नज़र से आगे भी