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ग़ज़ल
कोई रस्ता मिले क्यूँकर मिरे पा-ए-ख़जालत को
यहाँ तो पाँव धरना भी कोई इल्ज़ाम धरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
देखा तुझे जो ख़ून-ए-शहीदाँ से सुर्ख़-पोश
तुर्क-ए-फ़लक ज़मीं में ख़जालत से गड़ गया
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
किया शर्मिंदा इतना सख़्त-जानी ने नज़ाकत से
ख़जालत से सर उन के सामने मुश्किल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी
तो ये समझो कि बुनियाद-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ रख दी
साइल देहलवी
ग़ज़ल
क़ाबिल-ए-दीद है महशर में ख़जालत उन की
दो क़दम चलते हैं रुकते हैं ठहर जाते हैं