आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "khala ki jaan"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "khala ki jaan"
ग़ज़ल
'जान' फिर कर के किसी रोज़ ये उड़ जाएँगी
बेटियाँ बाप के आँगन में हैं चिड़ियों की तरह
जान काश्मीरी
ग़ज़ल
सब दिलों में जा-गुज़ीं हैं ग़म के क़िस्से एक से
सब जबीनों पर रक़म बे-रौनक़ी है एक सी
जान काश्मीरी
ग़ज़ल
आफ़त-ए-जाँ उस परी से दिल लगाना हो गया
उस को क्या चाहा कि इक दुश्मन ज़माना हो गया
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
इश्क़ में हुआ उन के दुश्मन इक जहाँ अपना
दर्द-ए-दिल करें किस से जा कर अब बयाँ अपना
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
हज़ार जान से मुश्क-ए-ख़ुतन हो हल्क़ा-ब-गोश
जो सूँघ ले कभी उस ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की बू
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
मैं मुस्तइद हूँ अगर नाला-ओ-फ़ुग़ाँ के लिए
तो कुछ से कुछ अभी हो जाए आसमाँ के लिए
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
मिरा जी जलता है उस बुलबुल-ए-बेकस की ग़ुर्बत पर
कि जिन ने आसरे पर गुल के छोड़ा आशियाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
तिरे हुज़ूर न ख़ाली किसी का जाम रहा
वो ख़ुश-नसीब तो मैं हूँ कि तिश्ना-काम रहा