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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
निगाह-ए-दीदा-ए-ता'बीर के हवाले 'ख़लिश'
है ये बयाज़ अलग इंतिख़ाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त
सर-ए-शोरीदा की ख़्वाहिश ब-कुलाहे गाहे
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
क्या हाल होगा उस का जिस दिल में ख़ार हैं हम
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
न जाने क्या कहें ऐ 'ख़ार' आह-ए-सर्द को मेरी
मिरे नाले को जो बे-वक़्त की कहते हैं शहनाई
ख़ार देहलवी
ग़ज़ल
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
पा-ए-तलाश पहली ही मंज़िल में रह गया
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
ख़ार देहलवी
ग़ज़ल
दिल को जिस वक़्त ख़याल सफ़-ए-मिज़्गाँ होगा
पा-ए-जाँ में ख़लिश-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ होगा