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ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मिरे शोख़-ए-ख़राबाती की कैफ़िय्यत न कुछ पूछो
बहार-ए-हुस्न को दी आब उस ने जब चरस खेंचा
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
ग़ज़ल
इधर भी इक नज़र ओ सब की जानिब देखने वाले
कि इक रिंद-ए-ख़राबाती नज़र-अंदाज़ है साक़ी
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं
गो ख़राबाती सही जिबरील के हम-पेशा हैं
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
कहाँ मुमकिन है 'नाजी' सा कि तक़्वा और सलाह आवे
निगाह-ए-मस्त-ए-ख़ूबाँ वो नहीं लेता ख़राबाती
नाजी शाकिर
ग़ज़ल
हूँ मैं इक आशिक़-ए-बे-बाक ओ ख़राबाती ओ रिंद
मुझ से मत पूछ मिरे इल्म-ओ-अदब का अहवाल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अपने क़दह की ख़ैर मना कर मय-कश अपनी राह लगे
रिंद-ए-ख़राबाती के दम से आबाद अब मय-ख़ाना है