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ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
बहुत से पेड़ आदम-ख़ोर-ख़सलत वाले होते हैं
'नवाज़' हर पेड़ के साये में सुस्ताया नहीं जाता
नवाज़ असीमी
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये क्या शहर के फूल भी पूछें रंग-ए-बहार की ख़सलत
ये क्या ख़ून हमारा पहनें ख़ुद अहबाब हमारे
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें आईं अँधेरों की सी फ़ितरत ओढ़े
फिर ग़म आया चढ़ती रातों की सी ख़सलत ओढ़े
वन्दना भारद्वाज तिवारी 'वाणी'
ग़ज़ल
उस की ख़सलत भाँप चुका हूँ बातें हँस कर टालेगा
और यक़ीनन बात बनेगी बातों पर झल्लाए तो