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ग़ज़ल
हमारी हर नज़र तुझ से नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैमान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
तिरे हुस्न पे फ़िदा हूँ तिरे इश्क़ में 'फ़ना' हूँ
मुझे तेरी आरज़ू है मिरी ख़ल्वतों में आ जा
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
भरे जोबन पे इतराती झमक अंगिया की दिखलाती
कमर लहंगे से बल खाती लटक घूँघट की भारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मिरी ख़ल्वतों की ये जन्नतें कई बार सज के उजड़ गईं
मुझे बारहा ये हुआ गुमाँ कि तुम आ रहे हो कशाँ कशाँ
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
मैं नहीं कहता कि मैं हूँ तू हो तेरी ख़ल्वतें
हाँ मगर सब से जुदा ख़ास इक नज़र मेरे लिए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
अपनी नज़रों में नशात-ए-जल्वा-ए-ख़ूबाँ लिए
ख़ल्वती-ए-ख़ास सू-ए-बज़्म-ए-आम आ ही गया