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ग़ज़ल
गुलदस्ता-ए-जिहात था नैरंग-ए-राह-ए-इश्क़
था इक तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-ख़याबान-ए-दाम-ए-शाम
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
न आया कुछ मगर हम कुश्तगान-ए-शौक़ को आया
हवा की ज़द में आख़िर बे-सिपर रखना ख़यालों को