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ग़ज़ल
फ़लक ने रंज तीर-ए-आह से मेरे ज़े-बस खेंचा
लबों तक दिल से शब नाले को मैं ने नीम रस खेंचा
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
ग़ज़ल
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया