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ग़ज़ल
मशिय्यत खेलना ज़ेबा नहीं मेरी बसीरत से
उठा ले इन खिलौनों को ये दुनिया है वो उक़्बा है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मुझे तुग़्यानियों से खेलना आता है हँस हँस कर
मिरा अज़्म-ए-जवाँ ममनून-ए-साहिल हो नहीं सकता
शमीम जयपुरी
ग़ज़ल
ये नाज़ुक चीज़ है दिल आप इस से खेल न खेलें
दिलों के खेल पूरे खेलना दुश्वार होता है