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ग़ज़ल
खिचा हुस्न-ए-वफ़ा हो कर जो ये तस्वीर-ए-वहदत में
ख़ुदा का नूर शामिल हो गया इंसाँ की सूरत में
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
तमाशा जांकनी का क्यूँ न देखा देख तो लेते
रगें जितनी खिची थीं दम भी उतना ही खिचा होगा
जावेद लख़नवी
ग़ज़ल
अपना अक्स आइने में देख के वो कहते हैं
वाह क्या ख़ूब ये नक़्शा है खिचा एक से एक
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
तिरे हँसने पे दिल अपना तिरी जानिब खिचा जावे
तिरे रोने पे दिल तड़पे 'अजब सी तिश्नगी छावे
आफ़ताब शाह
ग़ज़ल
खिंचा जो तूल-ए-शब-ए-जुदाई अँधेरी मदफ़न की याद आई
निगाह ओ दिल पर वो यास छाई उमीद जाती रही सहर की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-उल्फ़त से नहीं कुछ कम कशिश भी हुस्न की
बैठे बैठे दिल खिचा जाता है 'हामिद' सू-ए-दोस्त
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
क्या क्या बताऊँ बिगड़े हुए तेवरों में है
ग़ुस्से में भी है प्यार का नक़्शा खिचा हुआ
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तुझे चाँद बन के मिला था जो तिरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है