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ग़ज़ल
नज़ीर बनारसी
ग़ज़ल
खिंची कंघी गुँधी चोटी जमी पट्टी लगा काजल
कमाँ-अबरू नज़र जादू निगह हर इक दुलारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हाँ वही तस्वीर जो खींची थी मैं ने साथ में
हाँ वही तस्वीर कर जाती है अब तन्हा मुझे
अक्स समस्तीपुरी
ग़ज़ल
वो मै-कश हूँ कि दे कर दूनी क़ीमत सब की सब ले ली
किसी से जब सुना मैं ने कि भट्टी में खिंची अच्छी
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
जब मिरा ख़ूँ हो चुका शमशीर फिर खींची तो क्या