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ग़ज़ल
है ये इंसाँ बड़े उस्ताद का शागिर्द-ए-रशीद
कर सके कौन अगर ये भी ख़िलाफ़त न करे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ख़िलाफ़त से जबीन ओ आस्ताँ तक बात आ पहुँची
ख़ुदा और इब्न-ए-आदम में यहाँ तक बात आ पहुँची
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
मीर सय्यद मुज़फ्फर अली ज़फ़र मुज़ाहरी
ग़ज़ल
तुम्हारे अहद-ए-उल्फ़त की ख़िलाफ़त मान ली दिल ने
तुम्हारे बा'द ये बै'अत नहीं हो पाई कोशिश की
नासिरा ज़ुबेरी
ग़ज़ल
मुलूकीय्यत इबारत ख़ून से आहों से अश्कों से
हुकूमत के अँधेरों को ख़िलाफ़त ही करे रौशन